।। ऐ सुकून।।
ऐ सुकून ! मैं तुझको ढूंढ रही, जाने कब से तू लापता ।
कहां मिलेगा मुझको तू, रहता कहां बस पता बता।।
तू जब-जब मुझसे रूठा है, मेरा सब कुछ ही टूटा है ।
जब तुझको पास ना पाती हूं, तन्हा बरबस हो जाती हू।।
क्या मंदिर में तू बैठा है, क्या बहती पवन के झोंकों में।
क्या पर्वत में क्या नदियों में, क्या धन संबंधी भोगों में।।
मैं ढूंढ ढूंढ थक आई हूं ,पर तुझको साथ ना लाई हूं।
जहां गई बस तन्हा थी, नैनन में नीर समाई हूं ।।
जैसे कुछ हलचल हुई तभी, मेरे अंदर कुछ बोल पड़ा ।
मैं हूं सुकून तेरे अंदर ही,तू अपने मन को तोल जरा ।।
मैं कहीं नहीं भी जाता हूं, बस थोड़ा छुप जाता हूं।
तेरे अंतर्मन में रहता हूं, हर पल तुझको अजमाता हूँ।।
मेरा वजूद तो तुझसे है, मैं तुझ से कभी अलग नहीं ।
तू हिम्मत करके देख जरा ,तू पाएगी मुझको वहीं।।
फिर मैं धीरे से मुस्काई, मेरे अधरों पर हंसी छाई ।
कितनी अल्हड हूं पागल हूं ,छोटी सी बात न समझ आई ।।
स्वरचित।।
।। हीतू सिंगला।।