। ।।यादों के साये।।।
बीते कल की परछाई ,
क्यों पीछे पीछे चलती है।
मेरा ही तो साया है वो,
लेकिन मुझ को खलती है।
कुछ वक्त कटा, कुछ उम्र बढी़,
मेरा मन भी अब छल आया।
मेरी आंखों के आगे फिर से,
मेरा बीता कल आया ।।
मैं क्यों आगे ना देख सकी,
पीछे देखा कुछ घबराई।
जीवन की उठाँपटक में मैंने ,
अपनी सारी उम्र गँवाई ।।
बेतुक बातों की गठरी की,
खोल चुकी गांठे सारी।
क्यों सहे संजोए रखी मैंने,
इन यादों से अब हारी ।।
दिल नादान शिशु सा है,
सौ- सौ सवाल ये करता है ।
मेरे समझाने पर मुझसे,
लड़ता है झगड़ता है ।।
सारी दुनिया को समझाती हूं,
पर खुद से मात में खाती हूं ।
डग भरती आगे बढ़ने को,
पर पीछे खिंचि सि आती हूं ।।
अब मुझ को उठना होगा,
बिन साये के चलना होगा ।
रवि पीछे था अब आगे है,
साया डरकर अब भागे है।।
जो बीत गई रातें सारी,
अब मेरा सूरज आएगा।
सूरज के आगे अंधकार अब,
ज्यादा ना टिक पाएगा।।
।।स्वरचित
हीतू सिंगला ।।