सुंदर है मनोरम है मीठी है सरल है
ओजस्विनी है और अनूठी है यह हिंदी
पाथेय हैं प्रवास में परिचय का सूत्र है
मैत्री को जोड़ने की साकल है ये हिंदी
प्रेम की अभिव्यक्ति में संकोची और भावुक है मेरी हिंदी
जब हो भावुक मन तो सजीव प्रेमिका सी
हूं ,….हां…के घूंघट में सिमट जाती मेरी हिंदी
और कभी बहन अंग्रेजी के कंधे पर
हाथ रखकर सकुचाती मेरी हिंदी
पढ़ने पढ़ाने में सहज है यह सुगम है
साहित्य का असीम सागर है यह हिंदी
तुलसी कबीर मीरा ने इसमें ही लिखा है
विदुषी गार्गी ने इनकी मां के सहारे शास्त्रार्थ किया है
कभी सूर के सागर की गागर है हिंदी
निश्चय ही वंदनीय मां सम है यह हिंदी।
सिद्धि पोद्दार