अरे मधू बेटा ये क्या है?”..अखिलेश जी ने उस छोटे से डब्बे को उलट पलट करते हुऐ पूछा…” ये एलेक्सा है,आपकी नई गर्लफ्रैंड” ..आप इससे कुछ भी पूछिये ये आपको सबका जवाब देगी..देखिए”एलेक्सा वाट इज टेम्परेचर नाउ?..”इट्स 43° नाउ”…पता आप इसमें अपनी पसंद के गाने भी सुन सकते है,और मैने इसमें आपकी दवा और वाकिंग दोनो का रिमाइंडर सेट कर दिया है,अब कोई बहाना नहीं चलेगा…अरे वाह बेटा ये तो बडे काम की चीज़ है…”आपने.फिर फ्रिज से लड्डू खाए “सुनीता जी गुस्से से बोली” …अखिलेश जी मधू के कान मेंं फुसफुसा के बोले ..”तभी मौसम इतना गरम है”और.दोनो खिलखिला कर हंस पडे..तुमने ना बिगाड़ के रखा है अपने पापा को..कहते हुए सुनीता जी पलटी कि अखिलेश जी ने कहा”एलेक्सा प्ले ऐ मेरी जोहराजबी”…ओके..और अखिलेश जी सुजाता जी का हांथ पकड़ के डांंस करने लगे और मधू हंस हंस के दोहरी हुई जा रही थी।
मधू आपने पापा की एकलौती बेटी थी,मधू की माँ जब वो दो साल की थी,तभी एक एक्सीडेंट में चल बसी,पापा ने उसे माँ बाप दोनो का प्यार दिया, वह बहुत चंचल और हसमुख लडकी थी,जहाँ जाती माहोल में चार चाँँद लगा देती,मधू अपनी दोस्त की शादी में गई थी,सबकी जुबान पर बस मधू का ही नाम था,वहीं सुनीता जी नें मधू को देखा वो एक नज़र में ही उन्हे अपने बेटे राहुल के लिए भा गई।रहुल एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था,मधू खुद भी इसी प्रोफेशन में थी,सुनीता जी ने बात चलाई और ज्लद ही मधू बहू बनकर उनके घर आ गई।
रहुल भी एकलौती संतान था और पहले पढाई और अब काम के सिलसिले में अक्सर ही बाहर रहता था,अखिलेश जी और सुनीता जी के सूने घर में मधू के आने से बहार आ गई,सुनीता जी को तो जैसे दोस्त मिल गई दोनो खूब गप्पें लडाते, शापिंग करते साथ साथ खाना बनाते ,और अखिलेश जी की वाकिंग पार्टनर बन गई, ऐसा लगता था मधू बहू नहीं बेटी हो उनकी।राहूल ज्यादातर टूर की वजह से बाहर ही रहता था,मधू उसके प्रोफेशन को समझती इसलिए कुछ ना कहती।
ऐसे ही दो साल बीत गए, राहुल ६महीने के लिए अमेरिका गया था,आते ही उसने सबको हाल में बुलाया और कहा मुझे आप सबसे कुछ बात करनी है”देखिए मैं और प्रिया कालेज के समय से एक दूसरे से प्यार करते है,प्रिया के पेरेन्ट्स उसकी शादी दूसरी कास्ट में कराने के सख्त खिलाफ थे,इसलिए मैने आप लोगो से भी बात नहीं की,लेकिन अब जब प्रिया के पेरेन्ट्स की कार ऐक्सिडेंट में मौत हो चुकी है,मैं प्रिया से शादी करना चाहता हूँ” …चटाक एक जोरदार चाटा राहुल के गाल पर पडता है..ये अखिलेश जी थे…सुनीता जी और मधू तो बुत बने खडे थे..मानो जो सुना उसपर यकीन ही ना हो…”शादी को मजाक बना रखा है,ये सब कहने से पहले तूने एकबार भी नहीं सोचा कि मधू का क्या होगा और इसमें उस बेचरी की क्या गल्ती है”…..”सोचा ना पापा मै उसे अपनी प्रोपर्टी का आधा हिस्सा एलुमनी के तौर पर दूगा और वो जो दूसरा घर है वो भी मधू के नाम कर दूंगा,वैसे भी हमारे ब्च्चे नहीं है अभी,तो मधू चाहे तो दूसरी शादी कर सकती है,कोई न कोई मिल जाएगा इसे भी”….राहुल… सुनीता जी ने जोर से चिल्लाते हुए कहा…”शर्म आती है मूझे तुझे अपना बेटा कहते हुए”…कहते हुए सुनीता जी की सांस फूलने लगी…मधू उनकी हालत देखकर जैसे नींद से जागी…..और ज्लदी से दवा दी…मधू को देखर सुनीता जी ने बेबसी से उसके सर पर हाँथ फेरा….”ओह कम आन माँ कोई इमोशनल ड्रामा नहीं प्लीज मैने डिसाइड कर लिया है ,और ये मेरा आखिरी फैसला है”….”ठीक है राहुल”मधू ने दृढता से कहा….”रिश्ते मजबूरी में नहीं निभाए जाते,और शादी तो प्यार पर ही टिकी होती है,और जब तुम मुझसे प्यार नहीं करते तो मैं तुम्हे जबरदस्ती तुम्हें बांध कर नहीं रख सकती….बता देना कि कहाँ साइन करना है मैं कर दूंगी..और हाँ मुझे कोई जायजाद कोई एलुमनी नहीं चाहिए… मैं अपने आप को सम्हाल सकती हूँ”….कहते हुए मधू आपने कमरे मेंं गई और अपने सामान के साथ बाहर आई…और जैसे ही अखिलेश जी के पैर छूने के लिए झुकी..उन्होनें ने कहा …ये क्या कर रही हो बेटा….अब किस हक से यहां रहूँ पापा…मधू ने डबडबाई हुई आँखो से कहा….मेरी बेटी होने के हक से….”और मि. राहुल जिस जायदाद जिस प्रौपर्टी की आप बात कर रहें है..वो आभी भी मेरी है…और आज के बाद उसपर आपका कोई हक नहीं…मैं अभी वकील को बुलाता हूँ और ये सब मधू के नाम करता हूँ”…लेकिन पापा आप एक पराई लडकी के लिए मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते है….”पराई मधू नहीं तुम हो गए हो रहुल…और मै इनके इस फैसले में इनके साथ हूँ”..कहते हुए सुनीता जी ने दरवाजा खोल दिया.. और राहुल पैर पटकता हुआ वहाँ से चला गया।