क्या बात है लता? अभी तक नाश्ता भी नहीं किया बस घर की सफाई किए जा रही हो।”, मनोज ने पूछा।
“आपको बताया तो था कि मेरी स्कूल की सहेली मीना आज लंच पर आ रही है।,” लता ने कहा।
“अरे हां, तुमने बताया था कि स्कूल खत्म होने के बाद तुम उससे कभी मिल नहीं पाई थी और संजोग से उसके ऑफिस की मीटिंग यहां है। अब समझा कि इतनी सफाई क्यों हो रही है,” हंसते हुए मनोज ने कहा।
“लता तुम्हें अपनी तबीयत का तो पता है ना! डाॅक्टर ने समय पर खाना खाने की हिदायत दी है लेकिन फिर भी तुमने अभी तक नाश्ता नहीं किया। घर की सफाई तो तुम हमेशा करती हो लेकिन आज कुछ ज्यादा नहीं हो रहा?”, मनोज सवालिया लहजे में बोला।
“हां.. हां मुझे सब याद है, मैं कुछ भी नहीं भूली लेकिन आपको पता नहीं मीना ना परफेक्शनिस्ट है। हर काम को इतने परफेक्शन से करती है कि पूछिए मत। सबसे बड़ी बात मीन – मेख निकालने में नंबर वन है। एक बार मैं और मीना एक सहेली आशा के घर साथ गए थे। उसने हमें शाम की चाय पर बुलाया था। हम उसके घर गए, चाय पीया और जब वापस आने लगे तो मीना ने कहा, “यार देखा तुमने आशा के घर की हर चीज कैसी बेतरतीबी से रखी थी। चाय के साथ कोई मीठी बिस्किट देता है और तो और जिस कप में चाय दी थी वो भी टूटी हुई थी। चीजों को रखने का तरीका ही नहीं है। ऐसे – ऐसे लोग हैं। “
” अब मैं समझा… इसलिए तुम सफाई करने में जी – जान लगाए हुई हो लेकिन एक बात बताओं, तुम्हारें इतनी साफ – सफाई के बाद भी वो मीन – मेख निकाल दे तो क्या करोगी?,” मनोज ने कहा
“अब निकाले तो निकाले, मैंने अपनी तरफ से तो कोई कसर नहीं छोड़ी,” लता झूंझलाते हुए बोली।
“मैं यही तुम्हें समझा रहा हूं कि किसी दूसरे के तय किए गए सही – गलत के पैमाने पर खुद को क्यों साबित करना है। तुम जैसी हो वैसी रहो।”, मनोज ने लता को समझाते हुए कहा।
तभी दरवाजे की घंटी बजी.. लता सतर्क हो गई, अपने साड़ी के पल्लू को ठीक कर दरवाजा खोला। हाय…लता, कहते हुए मीना, लता के गले से लिपट गई। “अंदर आओ ना..” लता सोफे पर सरसरी नजर दौड़ाते हुए बोली। “अरे.. ये क्या? मीना ने ये कैसे कपड़े पहने हैं ? कपड़े से बेतरतीबी की सिलवटे झांक रही है। बच्चे को भी मिसमैच कपड़े पहना रखें है।,” लता सोच में पड़ गई।
दोनों स्कूल की यादें ताजा करने लगी। दोनों के पति उनकी बातें सुन रहे थे। तभी मीना ने कहा, “वाह यार, तुमने अपना घर कितना सुन्दर सजाया है और कितना साफ – सुथरा रखा है। मेरा घर देखोगी तो तुम्हें इतना बिखरा मिलेगा कि पूछो ही मत। “लेकिन तुम तो परफेक्शन पर बहुत ध्यान देती थी,” लता ने टोकते हुए कहा।
हां.. तब मैं अकेली थी अब हजारों काम है। घर और ऑफिस संभालते हुए बेतरतीबी पसंद आने लगी है।
“अरे मीना जी…. घबड़ाइए नहीं, मेरी पत्नी ने अब आपके “परफेक्शन” का टैग संभाल लिया है,” मनोज ने लता को छेड़ते हुए कहा।
सब एकसाथ हँस पड़े……।
वाह-वाह! बहुत खूब लिखा है!