टीवी धारावाहिक
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद
सुना है हमने कि लग्न सात जन्मों का बंधन हैं…
किंतु,
आजकल की टीवी धारावाहिकों में तो…
पहला पति फिर दूसरा पति,
वापस पहला पति!!!
जैसे कि एलिजाबेथ टेलर!!!
पहले तो माता-पिता कन्यादान
करते थे.
अभी तो…
वर का दान होता है!!!
बच्चें अपनी माता, या तो पिता
की शादी कराते हैं!!!
पति अपनी पत्नी की
या फिर पत्नी अपने पति की
दूसरी शादी करातें हैं!!!
प्रेमी अपनी प्रेमिका की
या फिर प्रेमिका अपने प्रेमी की
दूसरी शादी करातें हैं!!!
नायक नायिका को इतने भले
दर्शाते हैं, कि अच्छाई भी शर्मा जाये.
पहले भलाई से देवताओं बन जाते हैं. बाद में , बूरे लोगों बदला एवं
ईष्र्या की आग में दानवों बन जाते हैं. घरेलू संबंधों में… वैमनस्य, शक…
टीवी धारावाहिकों को देखने के लिए, घर में अराजकता फैलती है.
सामाजिक जीवनसे एवं नाते-रिश्तेदारोंसे दूरी हो जाती हैं.
टीवी धारावाहिकों को, घसिटते जातें हैं, घसिटते ही जाते हैं.
एक जुठ छुपाने के लिए,
जुठ पर जुठ, जुठों का सहारा लिया जाता है.
यह सब बातों में हमारे देश की
संस्कृति कहाँ आयी???
विदेशों की नकलसे, हमारा देश
कहाँ जा रहा है?
क्या होगा हमारें देश का?
क्या होगा हमारी संस्कृति का?
यह तो एक तरह से अच्छा हुआ कि
थोडें समय के लिए, लोकडाउन आया!!!
धार्मिक धारावाहिकों की भरमार आयी!!!
बच्चों को मालूम तो हुआ कि
हमारा देश कितना महान है!
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद